संसद में उठा सियासी तूफान! ‘मंत्री हटाओ बिल’ पर हंगामा, सदन स्थगित!

शालिनी तिवारी
शालिनी तिवारी

20 अगस्त को संसद में पेश हुआ 130वां संविधान संशोधन बिल, 2025, अब देश की राजनीति का नया हॉट टॉपिक बन गया है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा लोकसभा में इस बिल को पेश करते ही सत्ता और विपक्ष के बीच भयंकर तकरार देखने को मिली।

बिल का विरोध इतना जबरदस्त हुआ कि लोकसभा और राज्यसभा दोनों को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित करना पड़ा।

क्या है 130वां संविधान संशोधन बिल?

इस बिल में केंद्र और राज्य सरकारों के मंत्रियों को उनके पद से हटाने का प्रावधान है — अगर वे भ्रष्टाचार या किसी गंभीर अपराध में कम से कम 30 दिन की हिरासत में लिए जाते हैं। यानी गिरफ्तारी और जमानत के खेल से परे, एक कड़ा नैतिक दायरा तय करने की कोशिश।

विपक्ष का कड़ा विरोध – “संविधान से खिलवाड़!”

बिल के खिलाफ विपक्ष ने मोर्चा खोल दिया। कांग्रेस, तृणमूल, सपा और वामपंथी दलों ने इसे “राजनीतिक हथियार” करार दिया और कहा कि इससे सत्ता पक्ष मनमानी करेगा

राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने बयान दिया:

“ये बिल कभी पास हो ही नहीं सकता। इसके लिए दो-तिहाई बहुमत चाहिए जो एनडीए के पास नहीं है। अभी उनके पास सिर्फ 293 सीटें हैं, जबकि ज़रूरत है 363 की।”

शाह vs वेणुगोपाल – सदन में तीखी बहस

बिल पर चर्चा के दौरान लोकसभा में कांग्रेस के केसी वेणुगोपाल और अमित शाह के बीच ज़ोरदार जुबानी जंग देखने को मिली।
शाह ने कहा:

“मैंने तो खुद गिरफ्तार होने से पहले ही इस्तीफा दे दिया था। क्या अब विपक्षी नेता भी इतना नैतिक साहस दिखाएंगे?”

सदन स्थगित – लोकतंत्र में ठहराव?

बिल पर असहमति इतनी बढ़ी कि दोनों सदनों को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया। संसद का मानसून सत्र अब बिना किसी समाधान के समाप्त हो गया। सवाल ये है कि क्या ये लोकतंत्र का स्वस्थ संकेत है या सत्ता और विपक्ष का टकराव नया रिकॉर्ड बना रहा है?

नैतिकता या राजनीति?

जहां एक तरफ यह बिल नैतिक राजनीति की ओर एक कदम बताया जा रहा है, वहीं दूसरी तरफ विपक्ष इसे सत्ता का हथियार मान रहा है। सवाल यही है:
क्या मंत्रीपद से हटाने का अधिकार न्यायिक प्रक्रिया से जुड़ा होना चाहिए या राजनीतिक निर्णय से?

130वें संविधान संशोधन बिल ने देश की राजनीति में नई बहस छेड़ दी है। संसद का स्थगन बताता है कि देश की सबसे बड़ी पंचायत में अभी भी सहमति से ज़्यादा विरोध है।

अब देखना ये है कि क्या सरकार विपक्ष को मना पाएगी या ये बिल राजनीति का शिकार बन जाएगा।

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